जिस महान धार्मिक प्रणाली ने मानवता का मार्गदर्शन हजारों वर्षों से किया है, उसे सार रूप में विकसित होता हुआ एक धर्म माना जा सकता है, जो युग-युग में पुन:स्थापित होता आया है, जो मानवता के एक स्तर से दूसरे स्तर पर सामूहिक विकास के साथ, विकसित होता जाता है। धर्म, ज्ञान और व्यवहार की वो प्रणाली है, जिसने विज्ञान के साथ मिलकर, समस्त इतिहास में सभ्यता को आगे बढाया है।
धर्म आज बिल्कुल वैसा नहीं हो सकता जैसा कि वह पूर्व के युग में था। आज की दुनिया में जिसे धर्म माना जाता है, बहाई ये मानते हैं कि, बहाउल्लाह के द्वारा अवस्थित आधारभूत सत्य के प्रकाश में उसका पुनर्परीक्षण करना ही चाहिये : ईश्वर की एकता, और मानव परिवार की एकता।
तुम सावधानीपूर्वक देखो, इस अस्तित्व के संसार में सभी वस्तुओं को सदा नवीन किया जाना चाहिये। तुम अपनी भौतिक दुनिया को देखो, देखो यह अब किस प्रकार नवीनीकृत कर दी गई है। विचार बदले हैं, जीवन के तरीके संशोधित किये गये हैं, खोज और आविष्कार नये हैं, समझ नई है। तब यह कैसे हो सकता है कि इतनी अधिक महत्वपूर्ण शक्तिवाला धर्म-मानवजाति की महान उन्नति की जिम्मेदारी लेने वाला, अनन्त जीवन को प्राप्त करने का एकमात्र साधन, अनंत श्रेष्ठता को पोषित करने वाला, दोनों लोकों का प्रकाश-नवीन न किया जाये?
(अब्दुल-बहा, अब्दुल-बहा के लेखों से चयन)
बहाउल्लाह ने एक समझौता रहित मानदण्ड स्थापित किया : यदि धर्म, विभेद, अनबन या विरोध का कारण बनता है - हिंसा और आतंक तो कदापि नहीं – उसके बिना रहना सर्वोत्तम है। सच्चे धर्म की कसौटी उसके फल हैं। धर्म को प्रमाण्य रूप से मानवता को उच्च करना, एकता स्थापित करना, अच्छा आचरण स्थापित करना, सत्य की खोज को बढ़ावा देना, मनुष्य के अंत:करण को स्वतंत्र करना, सामाजिक न्याय का विकास करना और दुनिया की बेहतरी को आगे बढ़ाना चाहिये। सच्चा धर्म विविध और जटिल सामाजिक परिवेश में व्यक्ति, समुदायों और संस्थाओं के बीच संबंधों को सुसंगत करने के लिये नैतिक आधार प्रस्तुत करता है। यह सच्चे आचरण को पोषित करता है, सहनशीलता, संवेदना, क्षमाशीलता, उदारता और ऊंची नैतिकता सिखाता है। यह अन्य को चोट पहुंचाने की मनाही और आत्माओं को अन्य की भलाई हेतु त्याग करने के लिये आमंत्रित करता है। यह एक विश्व-व्यापी परिकल्पना देता है और हृदय को स्वार्थ व पूर्वाग्रह से मुक्त करता है। यह आत्माओं को सबकी भौतिक और आध्यात्मिक बेहतरी के लिये प्रयास करने, दूसरों के सुख में स्वयं का सुख देखने, सीख व विज्ञान को विकसित करने, सच्चे आनंद को माध्यम बनाने और मानवजाति के शरीर को पुनर्जीवित करने हेतु प्रोत्साहित करता है।
धर्म यह स्वीकार करता है कि सत्य एक है, इसलिये उसे विज्ञान के साथ समन्वय में होना ही चाहिये। जब पूरक के रूप में समझा जाता है तब विज्ञान व धर्म लोगों को वास्तविकता की दृष्टि प्राप्त करने और आस-पास की दुनिया को सही रूप देने के लिये, नये और आश्चर्यजनक साधन उपलब्ध कराता है, और प्रत्येक प्रणाली दूसरे के उपयुक्त प्रभाव से लाभान्वित होती है। विज्ञान जब धार्मिक दृष्टिकोण से वंचित होता है तो भौतिकवाद के कट्टरपन के दोष से मुक्त हो सकता है। धर्म जब विज्ञान से वंचित होता है तो भूतकाल के वहम और अंधविश्वास का शिकार हो सकता है। बहाई शिक्षाएँ कहती है :
अपना सारा विश्वास विज्ञान के समन्वय में रखो, इसमें कोई विरोध नहीं हो सकता, क्योंकि सत्य एक है। जब धर्म उसके अंधविश्वास, परंपराओं और नासमझ रूढियों से वंचित हो जायेगा व विज्ञान के साथ उसकी सहमति बतायेगा तब विश्व में एक महान एक्य करने वाली प्रक्षालन शक्ति, उसके सामने आने वाले सभी युद्धों, विवादों, झगडों, कलह का नाश कर देगी – और तब मानवजाति ईश्वर के प्रेम में एक हो जायेगी।
(अब्दुल-बहा, अमृत-वाणी (पेरिस टॉक्स))
सच्चा धर्म मानव का हृदय परिवर्तन कर देता है और समाज के रूपान्तरण में योगदान देता है। यह मानवता की सच्ची प्रकृति के बारे में और उन सिद्धांतों के बारे में जिनसे सभ्यता विकास कर सकती है, अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। मानव इतिहास के इस संकटपूर्ण मोड़ पर, हमारे समय का आधारभूत सिद्धांत मानवजाति की एकता है। यह साधारण कथन एक सत्य का प्रतिनिधित्व करता है, यदि एक बार स्वीकार कर लिया जाये तो किसी भी एक नस्ल या देश की श्रेष्ठता संबंधी पूर्व की सभी धारणाओं को अमान्य कर देता है। यह विश्व के विविध लोगों के बीच परस्पर सम्मान देने तथा सद्भावना से कहीं अधिक है, यद्यपि ये महत्वपूर्ण हैं। इसका तार्किक निष्कर्ष निकालने पर इसका अभिप्राय समाज के ढांचे तथा उन संबंधों में मूलभूत परिवर्तनों से हे जो इसे स्थाई बनाते हैं।